लालच का फल हिन्दी कहानी -Lalach ka phal
हिंदी कहानी
पुरानी बात बात है बहुत समय पहले हैं एक नगर में चार ब्राम्हण पुत्र रहते थे। उन चारो ने सांथ मिलकर एक ही गुरु से शिक्षा प्राप्त की किन्तु चारो बहुत गरीब थे। वे चारो गरीबी से परेशान होकर सोचने लगे की इतना ज्ञान प्राप्त करके गरीबी में ही जीवन काटना है तो ज्ञान प्राप्त करने का कोई फायदा नहीं है। गरीब व्यक्ति को समाज में कोई मान-सम्मान नहीं देता। उसके रिश्तेदार और सगे-संबंधी भी उससे मुंह मोड़ लेते हैं।
ज्ञान से धन अर्जन भी किया जा सकता है तो हमें भी इस ज्ञान का उपयोग अपनी गरीबी दूर करने में करना चाहिए। यह सोचकर वे चारो धन प्राप्त करने के लिए दूसरे नगर की ओर चल दिए। रास्ते में वे पवित्र नदियों में स्नान करते और मंदिरों के दर्शन करते हुए जा रहे थे। एक स्थान पर उन्हें आश्रम दिखलाई दिया। वे चारो उस आश्रम में चले गए उन्होंने वहाँ एक योगी को देखा जिनके चेहरे पर तेज था। चारो ने उन योगी महाराज को प्रणाम किया और वहीँ रुक गए। योगी ने चारो से पूछा- तुम कौन हो और किधर जा रहे हो।
चारो ब्राम्हण पुत्रो ने अपना परिचय दिया और बतलाया – “ हम बहुत गरीब है और गरीब होने के कारण समाज में हमें कोई मान-सम्मान नहीं देता इसी कारण धन कमाने की कामना से घर से निकल कर दूसरे नगर जा रहे हैं। ”
योगी और उन चारो ब्राम्हण पुत्रों में बहुत देर संवाद चलता रहा। चारो की धन कमाने की लालसा को देखते हुए योगी ने उन्हें चार मोती दिए और कहा – “ इन मोतियों को लेकर तुम हिमालय पर्वत की तरफ जाओ और जिसका मोती जहाँ गिर जाए वहाँ उसे खजाना मिलेगा। धन मिलने के पश्चात उसे लौटना पड़ेगा। ”
चारो ब्राम्हण पुत्र योगी को प्रणाम करके मोती लेकर हिमालय की दिशा में चल दिए। जाते-जाते रास्ते में एक ब्राम्हण पुत्र के हाँथ से मोती गिर गया जब वहाँ खुदाई की तो वहाँ तांबे की खदान मिली। उसने अपने मित्रों से तांबा लेकर वापस घर चलने के लिए कहा। इस बात पर उसके सांथी बोले – “ इस तांबे से हमारी गरीबी दूर नहीं हो सकती। ” जिसके हाँथ से मोती गिरा था वह इच्छानुसार तांबा लेकर घर चला गया शेष तीनों हिमालय की तरफ चल दिए।
चलते-चलते एक और मित्र के हाँथ से मोती गिर गया। जब उस स्थान को खोदा गया तो वहां चाँदी की खदान मिली। वह बोला – “ अपनी इच्छानुसार चाँदी लेकर घर चलते हैं। ” शेष दोनों ब्राम्हण पुत्र बोले – “ पहले तांबा मिला अब चाँदी निश्चय ही आगे सोना मिलेगा। इसीलिए हमें आगे चलना चाहिए। ” दूसरा सांथी चाँदी लेकर घर चला गया और शेष दोनों आगे चल दिए।
आगे जाते समय कुछ दूर चलने पर तीसरे के हाँथ से भी मोती गिर गया जब उस स्थान को खोदा तो वहाँ सोने की खदान मिली। तीसरे मित्र ने कहा – “ अब अपनी शक्ति अनुसार यहाँ से सोना ले लेते हैं और घर वापस चलते हैं। इस सोने से हमारी गरीबी दूर हो जाएगी। ” चौथा ब्राम्हण पुत्र बोला – “ हमें पहले तांबा , फिर चाँदी और अब सोना मिला है अगर हम आगे जाते हैं तो निश्चय ही हमें हीरे-जवाहरात मिलेंगे। थोड़े से ही हीरे-जवाहरातों से हम बहुत धनवान बन जायेंगे। हमें आगे चलना चाहिए। “
तीसरा ब्राम्हण पुत्र बोला – “ मैं तो इतने में संतुष्ट हूँ। तुम्हें अगर आगे जाना है तो तुम जा सकते हो मैं यहीं बैठ कर तुम्हारा इन्तजार करूँगा। ”
चौथा मित्र उसे छोड़कर आगे चल दिया। रास्ता बहुत कठिन था फिर भी वह आगे बढ़ता ही जा रहा था। आगे रास्ते में उसे एक व्यक्ति मिला जिसके सिर पर चक्र घूम रहा था। ब्राम्हण पुत्र ने उस व्यक्ति से पूछा – “ यह चक्र तुम्हारे सिर पर क्यूँ घूम रहा है। ”
अभी बात चल ही रही थी कि वह चक्र उस व्यक्ति के सिर से ब्राम्हण पुत्र के सिर पर आ गया। ब्राम्हण पुत्र को कुछ समझ नहीं आया और उसने फिर पूछा – “ यह चक्र मेरे सिर पर कैसे आ गया। ”
उस व्यक्ति ने कहा – “ यह चक्र इसी तरह मेरे सिर पर भी आया था मैं भी धन के लोभ में यहाँ आया था। जब तुमसे बड़ा कोई धन का लोभी यहाँ आकर तुमसे पूछेगा तो यह चक्र उसके सिर पर चला जायेगा। ”
ब्राम्हण पुत्र ने पूछा – “ तुम यहाँ कबसे हो और क्या तुम्हें भूख प्यास नहीं लगती। ”
ब्राम्हण पुत्र की बात सुनकर वह बोला – “मैं तो यहाँ कई वर्षों से हूँ। जब यह चक्र किसी के सिर के ऊपर आ जाता है तो उसकी भूख-प्यास मिट जाती है और मृत्यु का भय भी ख़त्म हो जाता है। उसके केवल इस चक्र के घूमने का कष्ट ही परेशान करता रहता है। ”
इधर तीसरा मित्र जो सोना पाकर संतुष्ट हो गया था उसने बहुत समय तक अपने मित्र के लौटने का इन्तजार किया किन्तु जब वह नहीं आया तब खुद ही उसे ढूँढने आगे बढ़ गया और अपने मित्र के पैरों के निशान की सहायता से वहाँ तक पहुँच गया जिधर उसका मित्र था |
उसने देखा कि चौथा मित्र एक स्थान पर बैठा है और उसके सिर पर चक्र घूम रहा है। उसने अपने मित्र से सारा माजरा जानना चाहा। चौथे मित्र ने पूरी कहानी सुना दी और उस चक्र को भाग्य का चक्र बतलाया। तीसरे मित्र ने कहा – “ यह भाग्य का नहीं अपितु लालच का चक्र है। मैंने तुम्हें कितना समझाया पर तुम नहीं माने। विद्या की तुलना में बुद्धि का स्थान ऊपर है तुमने विद्या तो प्राप्त कर ली किन्तु अपनी बुद्धि से अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर सके। ”
जिस के सिर पर चक्र था उसने अपने मित्र से सहायता मांगी
चौथे मित्र ने कहा – “ यह मात्र देव संयोग नहीं अपितु मेरे लालच का फल है। मुझे यहीं रहकर अपने कर्मो और लालच का फल भोगना है किन्तु ईश्वर कृपा से सभी का उद्धार होता है तो मेरा उद्धार भी अवश्य होगा। तुम्हें भी अधिक देर यहाँ नहीं रुकना चाहिए नहीं तो यह चक्र तुम्हारे ऊपर भी आ सकता है। ”
इतना कहकर उसने अपने मित्र को जाने की अनुमति दे दी और तीसरा मित्र भी अपने हिस्से का धन लेकर अपने घर लौट आया। अपने कर्मो का फल भोगकर चौथा मित्र भी उपयुक्त समय पर उस चक्र से मुक्त हो गया।
शिक्षा – " लालच का फल कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी लालच में अँधा नहीं होना चाहिए।
इसलिए कहा गया हैं। -,,लालच का फल कड़वा होता हैं" हिंदी
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